दिया जा रहा था शराब में थोड़ा जहर मुझे
कितने धोखे दिए हैं, इस शहर ने मुझे,
रात ढलने के बाद गिनाया, सहर ने मुझे।
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मैं समझता रहा, ख़ुद को सयाना ज़रूर,
कई मर्तबा गिराया, मेरी ही नज़र ने मुझे।
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गर्द में, धुंध में,भीड़ में, सही-सही चला,
भटका तब हूँ, जब मिली साफ़ डगर मुझे।
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यों तो उन्हें दिल से ज़रूर भुला डाला मैंने,
फिर भी पल-पल रहती है उनकी ख़बर मुझे।
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साकी ने ही किया मेरे मरज़ का राज़फ़ाश,
दिया जा रहा था शराब में थोड़ा जहर मुझे।