दिमाग़ वाले
पत्थर थे वो, जिन्हें मैंने खुदा माना,
कैसे सुनते वे मेरे दिल का अफसाना..!
कोशिशें सारी नाकाम हुई, होनी ही थी,
ठोकर खायी, किस्मत में था ठोकर खाना..!
पी ले इन अश्कों को, है इनका मोल नहीं,
पर्दे में रख कुछ बातें, सब कुछ बोल नहीं..!
मतलब के ही तो हैं सारे रिश्ते और नाते,
इन रिश्तों को दिल के पलड़े पे तोल नहीं..!
क्या अचरज तेरे साथ अगर है तन्हाई,
हर महफ़िल की है यही आख़िरी सच्चाई..!
वे हैं दिमाग़ वाले, सारा सुख उनका है,
दिल वालों को तो मिलती केवल रुसवाई…!
© अभिषेक पाण्डेय अभि