दिमागकी चटनी ( हास्यकविता)
पत्नी ने कहा :
कब से पूछ रही हूँ
खाओगे क्या ?”
मैंने कहा पढते हुए अखबार :
“कुछ भी बना लो
दाल सब्जी रायता चटनी
सलाद वगैरह वगैरह
बस बनाना खट्टी चीज जरूर
और हां बस बनाना जरा टेस्टी ।”
सुन कर लम्बा मीनू
गुस्से से कहा उसने:
” आजकल जबान
हो रही है चटोरी ऐसी
जैसे बनने वाले हो बाप तुम
अरे लगाओ मत दिमाग ज्यादा
जो दूंगी बना खा लेना
नहीं तो चटनी ही बना
बना दूंगी दिमाग की तुम्हारे ।”
मैंने पढते हुए पेपर
फिर कहा :
” जब मीनू मालूम था तो
पूछा ही क्यो रही थी घंटे भर से ? ”
वह बोली :
” दिमाग मेरे तो भरा है गोबर
अब तो बोलने भी लगे हो बहुत
चटनी बना दूंगी
जबान की भी ”
कहा मैने :
” भागवान बोलती हो ज्यादा
करती हो काम कम, बनाना है जो
बनाओ जल्दी ।”
बोली वह :
” आ जाओ जरा पास मेरे
होने हलाल
तभी निकलूगी दिमाग और जबान ”
और ले कर चाकू बढ़ी
वो तरफ मेरे
अब आया माजरा समझ में
बके जा रहे थे
अखबार की धुन में कुछ भी
मांगी माफी
फिर सुनी झिडकियां
बीवी की
मिला तब नाश्ता चाय और खाना
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल