!!! दिन भर घूमती हैं लाशे !!!
दिन भर घूमती हैं लाशे
इस शेहर और गलिआरों में
कुछ साँसों को अपने साथ
और किसी की साँसों का
सौदा करने को
बड़ा बेबस है इन्सान का नजारा
खुद का भार उठा नहीं पा रहा
और व्यापार कर रहा
दुसरे की ज़िंदा लाशों पर !!
कुछ संभलता सा , कुछ गिरता सा
कुछ डगमगा रहा
सौदा कर रहा .
अनजान है वो उस लाठी से
जो उस की यह हरकत देख रहा
संभालना तो चाहता है, पर
नहीं संभलता डूब रहा हवस
और जाम पर !!
अपनी कशमकश में उठा रहा है
सारी आशाओं का पिटारा
कंधे पर, मर मिटने को
चन्द सिक्कों पर, और
अपनी हैवानियत की शान पर !!
न जाने क्यूं कर रहा
किस की खातिर कर रहा
कौन सा भला हो जाएगा
सब मिटटी में मिल जाएगा
पल में सब भस्म हो जाएगा
किस की खातिर इस जुल्मी शैतान पर !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ