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3 Jun 2023 · 1 min read

दिन ढलता जाता

देखो! दिन ढलता जाता।
रात को दे मौन निमंत्रण,
रवि विहॅंसता भागे पथ पर,
साॅंझ को ले आकुल अंतर,
गोद में सिर रख सो जाता।
देखो! दिन ढलता जाता।
लौट चले तरू को नभचर,
क्लांत हुए हैं उनके भी पर,
दाना-पानी हेतु श्रम कर,
उन्हें उनका नीड़ बुलाता।
देखो! दिन ढलता जाता।
गायों का झुंड लौटा घर,
गोधूलि से भरता अंबर,
मुखर हुए घंटी के स्वर,
बछड़ा दूध को रंभाता।
देखो! दिन ढलता जाता।
आकुल-व्याकुल हुआ अंतर,
सूनेपन में जाता सिहर,
अपने चरण बढाऊॅं किधर?
अंधकार से जी घबराता।
देखो! दिन ढलता जाता।
—प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)

Language: Hindi
9 Likes · 345 Views
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