#दिनांक:-19/4/2024
#दिनांक:-19/4/2024
#विधा:- गीत
शीर्षक:-सुख तो बस हरजाई है।
खुद से खुद मैं लड़ती रहती,
सुख तो बस हरजाई है।
बात-बात पर रोती रहती,
जिद ही जिद को खाई है।
लौटा दो मेरा बचपन तुम,
अल्हण-चंचलपन में आऊँ।
नहीं सुहाती दुनिया मुझको,
कैसे मैं प्रतिभा बन पाऊँ।
मतभेद विचारों में भरकर,
घर -घर बैठी तनहाई है।
कैसे कहो, कहाँ मैं ढूंढू
अलगाव वाद परछाई है।
खुद से खुद मैं लडती रहती ।1।
नहीं सहारा कोई होगा,
बेटा- बेटी जन्मे तुम ।
खाली हाथ ही जाना होगा,
फिर भी मोह से मोहित तुम?
मोहन-मोहन करते जाओ,
मोहन ही तेरा साईं है,
कलयुग का जाप यही है,
जग जगन्नाथ समाई है ।
खुद से खुद मैं लडती रहती ।2।
राम अखिल ब्रह्मांड नायक,
धरती पर मानुष बन जनमे।
जीत लिया माया को प्रभु ने,
मर्यादित बन बिचरे वन में ।
हनुमत जैसा सेवक बन लो,
सीने में बिम्ब दिखाए हैं,
राम-नाम का सुमिरन कर लो,
जन-जन में राम समाए हैं।
खुद से खुद मैं लडती रहती।3।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई