*दिखे जो पोल जिसकी भी, उसी की खोलना सीखो【हिंदी गजल/गीतिका】*
दिखे जो पोल जिसकी भी, उसी की खोलना सीखो【हिंदी गजल/गीतिका】
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(1)
दिखे जो पोल जिसकी भी, उसी की खोलना सीखो
निरर्थक बन के प्रतिमा क्यों, खड़े हो बोलना सीखो
(2)
एजेंडा नफरतों वाला, बनाने में रखा क्या है
समझदारी तो तब है रंग, दिल के घोलना सीखो
(3)
कमाई बेईमानी की, अधिक दिन तक नहीं फलती
तराजू में बिना डंडी को, मारे तोलना सीखो
(4)
महल के एक पिंजरे में, बहुत सुख हैं मगर फिर भी
खुले आकाश में पक्षी-से, बन के डोलना सीखो
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451