दिखावा।
जीवन रुपी सर्कस में,
हर इंसान एक मसखरा है,
कोई है हर पल उदास यहां,
तो किसी का जीवन मस्ती भरा है,
सभी हैं बनते ज्ञानी यहां पे,
हर कोई यहां पर पंडित है,
आनंद का होता दिखावा यहां,
पर मन से हर कोई खंडित है,
खुले विचारों की वो बात हैं करते,
जिनकी सोच ही महिमामंडित है,
अपनी ही बनाई परंपराओं से,
पल-पल समाज ये दंडित है।
कवि-अंबर श्रीवास्तव।