दिए जलाओ प्यार के
अन्याय अत्याचार बहुत है,
अपराध भ्रष्टाचार बहुत है
आतंक अराजकता का
माहौल बहुत है!!
चाँद, सूरज तारे और सितारे
बहुत है
फिर भी अँधेरा ही अँधेरा
कहने को उजियार बहुत है!!
नारी शक्ति कि अर्घ्य आराधना
माँ दुर्गा का नव रात्रि में अनुष्ठान हुआ,
फिर भी नारी अबला
अकल्पनीय कल्पना से काँपती
चारो तरफ उजाला है
फिर भी नारी के मन में भय
भयंकर का अंधेरा है
किस पल लूट जाए मन में
डर का डेरा है,
यह कैसी दुनियाँ
कैसा सूर्योदय
सूरज तले अँधेरा है!!
सत्य के विजय के उल्लास से
आल्हादित जग सारा है,
मर्यादा की महिमा की गूँज
जग का नारा है!!
मर्यादा मर चुकी,
सत्य सार्थकता का
हो गया है अंत
रावण का मरना
व्यर्थ का अहंकार,
द्वेष, दंभ की दुनिया
आत्म भाव के अंधेरे में
हम पश्त हैं
फिर भी मस्त हैं!!
यदि अपने ही घर में हो
घनघोर तिमिर फिर
युग का यह आज तमस
क्या होगा इसका!!
आओ दियें जलाएं
प्यार के
मानवता परिवार के!!
तिमिर छटेगा
भ्रम भय मिटेगा
समरसता का रिश्ता नाता
सौम्य स्नेह का उजियारा!!
एन एल एम त्रिपाठी