दावत
एक दिन दावत में,
चला गया यार घर।
रबड़ी मलाई वहाँ,
पेट भर खाया मैं।
संग संग पूड़ी खीर,
पनीर का चटकारा,
बैठ इयारिन संग,
जम के लगाया मैं।
हुई रात घर आया,
सोई बीबी को जगाया,
उसके गुस्से को यार,
भाँप नहीं पाया मैं।
फुला तोंद देख मेरा,
बोली बड़े प्यार से वो,
गर ऐसे लोग पेट,
बाँन्हे धर खाएंगे।
भरे दरवाजे हीत,
मीत शर्मिंदा होंगे,
तुझ जैसे लोग कैसे,
इज्जत बचाएंगे।