दान/धर्म/भ्रष्टाचार
दान धर्म का चारो ओर,
बढ़ ही रहा बड़ बोला।
इसलिए हमने भी देखो ,
अपना कलम आज खोला।
धर्म मानव जीवन खातिर,
होता ही है बरदान ।
एक दान दस फ़ोटो खीचें,
इतना क्यूँ धर्म अपमान।
दान धर्म का धंधा भी,
खूब रहा है फूल फला,
धर्म नाम पर लूट होती,
बहुतों का कट रहा गला।
आचार सभ्यता हमारी,
जग में पाई है मर्यादा।
धर्म को ही कुछ भ्रष्टाचारी,
गर्त में डालने हुए आमादा।
दया धर्म से ऊपर है,
धर्म दया युक्त संस्कार।
विश्व गुरु अपने भारत में,
मत फैलाओ भ्रष्टाचार।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर, उ.प्र.
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