दादी
कल फिर आईं थीं दादी
पूरे एक साल बाद
आते ही खोल दिया अपनी झोली
और निकालने लगीं रंग बिरंगी कहानियाँ
गुदगुदाते चुटकुले
हँसते-गाते संस्मरण
खट्टी-मीठी लोरियाँ
‘दादी! भजन सुनाओ ना’
फिर
‘ठुमक चलत रामचन्द्र…’
सुनते-सुनते वही पुराने सवाल
‘दादा जी कैसे थे, कहाँ हैं, कब आएंगे’
जवाब में दादी का आसमान की ओर देखना
‘चन्दा मामा के पास गए हैं
ले आएंगे तुम्हारे लिए ढेर सारे खिलौने,
टोकरी भर मिठाइयाँ,
झोली भर कर रुपए’
कहते-कहते दादी का एकदम से खामोश हो जाना
पुनः सवाल,
‘कहाँ चली गईं थीं दादी
रुक जाओ न
हमेशा के लिए हमारे पास
तुम क्या जानो
कितना रोते हैं हम तुम्हारे जाने के बाद’
कुछ नहीं बोलतीं दादी
देखती रहती हैं
भरी-भरी आँखों से एकटक चुपचाप……….
अचानक नींद खुलती है
छोटी बिटिया के रोने की आवाज़ सुनकर
पत्नी सुला रही है उसे
थपकियाँ दे-देकर
तो आखिर
यह फिर वही एक सपना था
जो हर बार मेरा अपना था
दादी को गए
हो चुके हैं पूरे बारह मास
चन्दा मामा के देश में दादा जी के पास
लेकिन
जब भी देखता हूँ दादी को सपनों में
लौट आता है मेरा बचपन कुछ क्षणों के लिए
और
दे जाता है ‘असीम’ ऊर्जा जीवन भर के लिए।
✍🏻 शैलेन्द्र ‘असीम’