Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Apr 2023 · 4 min read

दादा की मूँछ

कहानी- दादा की मूँछ
रिश्तों और प्रेम की इस दर्द भरी कहानी को कहां से शुरू करूं, असमंजस से घिरी हूं। रिश्ते ही जीवन को गढ़ते हैं,जीवंत बनाते हैं, प्रेम की बेल होते हैं। रिश्तों के कारण ही मनुष्य जीवन में आगे बढ़ने की,सफलता पाने की, शिक्षित होने की तथा कार्य करने की इच्छा रखता है। रिश्तों की मधुरता जीवन को मधुर,सुखमय व खुशहाल बनाती है इसलिए तो रिश्तों में खटास आते ही व्यक्ति टूट जाता है।

व्यक्तियों के बीच आपस में होने वाले लगाव,संबंध या संपर्क को ही रिश्तों की संज्ञा दी है। हम सब रिश्तों की अदृश्य डोर से हमेशा बंधे रहते हैं। जिसके कारण हम एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते हैं, परंतु आज समाज में मानवीय मूल्य तथा पारिवारिक मूल्य धीरे- धीरे कम होते जा रहे हैं। जिन रिश्तों को हम अपने कर्मों द्वारा सींचते हैं, वे अब समाप्त होने के कगार पर हैं।

कलियुग में सब अकेले रहना चाहते हैं। शादी होते ही बेटा-बहू अलग रहने लगते हैं। बड़ों के अनुभव से सीख लेने वाला कोई नहीं है। अब तो बुजुर्गों की मूछें और बाल यूंही पक कर व्यर्थ हो जाते हैं।
एक दिन पार्क में घूमते हुए कुछ वृद्ध-बुजुर्गों का वार्तालाप सुनकर मैं वहीं अटक सी गई। कितनी बेचैनी और लाचारी इन दादा का पद प्राप्त किए हुए बुजुर्गों में दिखाई दे रही थी। पार्क में मिल- जुल कर सब लोग जोर-जोर से हंस तो रहे थे लेकिन यह खोखली और नकली हंसी हृदय में चुभ रही थी। दूर अनमनी से बैठी मेरे कानों
को उनकी बातें तीर की तरह भेद रही थीं।

सभी अपने अंतःकरण में घनीभूत पीड़ा को दबाए हुए,ऊपरी रूप से झूठी हंसी हंसने की कोशिश कर रहे थे। जिससे उनका शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा हो सके। वास्तव में आनंद एक मनोवैज्ञानिक अवस्था है। जिसे मनोविज्ञान में सकारात्मक प्रभाव के रूप में परिभाषित किया जाता है।

आज भले ही इनके पास दोस्त हैं। सब मिलकर व्यायाम कर रहे हैं, लेकिन इनका अंतर सूना पड़ा है, क्योंकि इनके अपने इनके साथ नहीं हैं। जिससे ये अपने आपको वंचित महसूस करते हैं। इनकी शारीरिक बीमारियां तो ठीक हो जाती हैं पर इनकी मानसिक बीमारी रिश्तों का खालीपन, इन्हें बहुत ठेस पहुंचाता है।

समूह में से एक ने कहा- अरे यार, क्या तुम सबको मालूम है। जब पोता दादा की मूँछें खींचता है तो दादा की उम्र दस साल कम हो जाती है। दूसरा बोला- हमें क्या पता ? हमारा पोता तो साल में कुछ दिनों के लिए हमसे मिलता है, उस पर भी बहुत सारे नियम उसके साथ लगे होते हैं।

तीसरा बोला- हां यार, यही हाल अपना भी है। तभी चौथा बोल पड़ा- मेरा पोता रहता तो मेरे घर के सामने ही है पर बहू मुझसे मिलने नहीं देती। कहती है, उनके साथ रहकर तुम भी उनके जैसे अनपढ़ गँवार बन जाओगे। उन्हें खाना तक तो ठीक से खाना नहीं आता है,दाल-भात हाथ से खाते हैं। पुराने जमाने का धोती कुर्ता पहने रहते हैं। अब तुम ही बताओ भाई, हम सब तो अपनी संस्कृति में इतने रचे बसे हैं की उसे हम कैसे छोड़ सकते हैं ?

तभी पांचवाँ बोल पड़ा- देख लेना पश्चिम की ओर उड़कर यह नई पीढ़ी के लोग कुछ प्राप्त नहीं कर पाएंगे। बाद में त्रिशंकु सम अधर में ही लटके रह जाएंगे।

छठवां बुजुर्ग बड़े धीरे से बोला- भाई, स्थिति और दशा तो मेरी भी आप लोग जैसी ही हैं लेकिन इतने दिन तक अपने बेटे-बहू की झूठी तारीफ करके तुम सबसे अपना दुख छिपाता रहा,पर आज तुम सब लोगों की व्यथा-कथा सुनकर मुझमें भी हिम्मत आ गई है। मेरी पत्नी को स्वर्गवासी हुए आज पांच साल हो गए हैं, तब से मेरी स्थिति नरक के समान हो गई है, ना तो ठीक से जी पाता हूं और ना मर ही सकता हूं।
पेंशन मिलती है,पैसे की कमी नहीं है पर बच्चों के साथ खेलने के लिए जी बहुत ललचाता है। बच्चे विदेशों में अपना-अपना जीवन जी रहे हैं। मैं अकेला घर में अपनी पत्नी की फोटो से सुख-दुख साझा कर लेता हूं। बोलते-बोलते उसकी आंखें नम हो चली थी। रोकते-रोकते भी एक बूंद हाथ पर टपक ही गई।

सब ने मिलकर विष्णु को सांत्वना दी और कहा- अरे विष्णु हम सब की स्थिति एक ही है। तुम नाहक ही परेशान होते हो। यह तो मनोहर ने मूँछों वाली बात छेड़ कर हम सब के नासूर हरे कर दिए, वरना हम सब कितनी जोर-जोर से हंस रहे थे। ओम प्रकाश बोल पड़ा- मैं तो मनोहर का धन्यवाद देता हूं कि जिसने हमारे नासूर को फटने से रोक लिया। अब हम सब एक- दूसरे की वास्तविकता जान चुके हैं इसलिए आज से हम सब और गहरे बंधन में बंध गए हैं, साथ ही झूठी मानसिकता से राहत पा चुके हैं।
सभी लोग एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर गले मिलते हुए फिर जोर-जोर से हंसने लगे। इस बार हंसी पूरी तरह झूठी नहीं थी। मन का बोझ कुछ हल्का हो चुका था।
विष्णु बोला- मनोहर यार,तुमने ही दादा की मूँछ का जिक्र किया और तेरी तो मूंछ ही नहीं है। तेरा पोता खींचेगा क्या ? मनोहर ने भी चुटकी लेते हुए कहा, मेरी ना सही तेरी तो हैं, तेरी ही खींच लेगा।
सबको हंसता मुस्कुराता देख अनायास ही मेरे होठों पर भी हंसी आ गई।
जिस परिवार के बड़े-बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता। उस परिवार में सुख-संतुष्टि और स्वाभिमान नहीं आ सकता। हमारे बड़े-बुजुर्ग हमारा स्वाभिमान हैं , हमारी धरोहर हैं। उन्हें सहेजने की जरूरत है। यदि हम परिवार में स्थाई सुख- शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो परिवार में उनका सम्मान करें। अपने बच्चों को उनका सानिध्य दें। बच्चे उनके साथ रहकर जो संस्कृति और संस्कार सीखेंगे। वह उनके जीवन की अद्भुत पूंजी होगी।

डॉ.निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया,असम

Language: Hindi
1 Like · 580 Views
Books from Dr Nisha nandini Bhartiya
View all

You may also like these posts

2463.पूर्णिका
2463.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
तुझको मांग लेते हैँ
तुझको मांग लेते हैँ
Mamta Rani
- बस एक बार मुस्कुरा दो -
- बस एक बार मुस्कुरा दो -
bharat gehlot
संभलना खुद ही पड़ता है....
संभलना खुद ही पड़ता है....
Rati Raj
श्री श्याम भजन 【लैला को भूल जाएंगे】
श्री श्याम भजन 【लैला को भूल जाएंगे】
Khaimsingh Saini
"बातों से पहचान"
Yogendra Chaturwedi
वो मुझे
वो मुझे "चिराग़" की ख़ैरात" दे रहा है
Dr Tabassum Jahan
"इतनी ही जिन्दगी बची"
Dr. Kishan tandon kranti
दस्तक देते हैं तेरे चेहरे पर रंग कई,
दस्तक देते हैं तेरे चेहरे पर रंग कई,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
हिन्दी दोहा बिषय-जगत
हिन्दी दोहा बिषय-जगत
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
माँ को दिवस नहीं महत्व चाहिए साहिब
माँ को दिवस नहीं महत्व चाहिए साहिब
मिथलेश सिंह"मिलिंद"
कहो कैसे हम तुमसे, मोहब्बत करें
कहो कैसे हम तुमसे, मोहब्बत करें
gurudeenverma198
गीत- अनोखी ख़ूबसूरत है...पानी की कहानी
गीत- अनोखी ख़ूबसूरत है...पानी की कहानी
आर.एस. 'प्रीतम'
जिस्म का खून करे जो उस को तो क़ातिल कहते है
जिस्म का खून करे जो उस को तो क़ातिल कहते है
shabina. Naaz
*मेरा सपना*
*मेरा सपना*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
तानाशाहों का अंज़ाम
तानाशाहों का अंज़ाम
Shekhar Chandra Mitra
शाम
शाम
Madhuri mahakash
* इस धरा को *
* इस धरा को *
surenderpal vaidya
अगर किसी के साथ अन्याय होता है
अगर किसी के साथ अन्याय होता है
Sonam Puneet Dubey
लेखनी चलती रही
लेखनी चलती रही
Rashmi Sanjay
टुकड़े हजार किए
टुकड़े हजार किए
Pratibha Pandey
मंजिल का अवसान नहीं
मंजिल का अवसान नहीं
AJAY AMITABH SUMAN
मेरी माँ
मेरी माँ "हिंदी" अति आहत
Rekha Sharma "मंजुलाहृदय"
भाग्य निर्माता
भाग्य निर्माता
Shashi Mahajan
प्रिय मैं अंजन नैन लगाऊँ।
प्रिय मैं अंजन नैन लगाऊँ।
Anil Mishra Prahari
कविता
कविता
Nmita Sharma
हिन्दी दिवस
हिन्दी दिवस
Mahender Singh
बेशर्मी से रात भर,
बेशर्मी से रात भर,
sushil sarna
तेवरी के लिए एक अलग शिल्प ईज़ाद करना होगा + चेतन दुवे 'अनिल'
तेवरी के लिए एक अलग शिल्प ईज़ाद करना होगा + चेतन दुवे 'अनिल'
कवि रमेशराज
नफ़रतों में घुल रही ये जिंदगी है..!
नफ़रतों में घुल रही ये जिंदगी है..!
पंकज परिंदा
Loading...