दांतो का सेट एक ही था
गर्मी बहुत पड़ रही थी,
एक बुढिया अपने बूढ़े को,
एक हाथ से पंखा झल रही थी,
दूसरे हाथ से खाना खिला रही थी
कही खाने में मक्खी न पड़ जाए,
खाने का मजा किरकिरा न हो जाय।
बूढ़े ने खाना खा लिया था,
अब बुढ़िया के खाने की बारी थी,
खाना दोनो को था और पूरी तैयारी थी
बूढ़े ने भी बुढ़िया को खाना खिलाया,
साथ में दूसरे हाथ से पंखा झलाया,
इस घटना को मुझ जैसा कवि तक रहा था,
उससे रहा न गया और बोला
लगता है आप पति पत्नि है,
दोनो में असीम प्यार है,
फिर दोनो एक साथ खाना क्यों नही खाते ?
बारी बारी से एक दूजे को खाना क्यों खिलाते हो ?
कवि की बात सुनकर,दोनो रोने लगे,
आपस में चिपट कर रोने लगे,
बोले,हमारी भी एक मजबूरी है
इसलिए खाना खाते हम बारी बारी है।
हमारे पास दांतो का सेट एक ही है,
जब ये खाती है तो ये लगा लेती है
जब मै खाता हूं तो मैं लगा लेता हूं
कवि भी सुनकर भावुक हो गया
तुरंत एक डेंटिस्ट को बुलवाया
और दोनो के लिए अलग अलग दांतो का सेट बनवाया।
ताकि भविष्य में एक साथ खाना खा सके
और अपनी जिंदगी प्यार से बसर कर सके।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम