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30 Sep 2020 · 1 min read

दाँव चलने की तुम ख़ता न करो

दाँव चलने की तुम ख़ता न करो
कोई उकसाए तो सुना न करो

है न तक़रार कोई भी अच्छी
बेवज़ह बात को बड़ा न करो

मंज़िलें मिल भी सकें नहीं भी मिलें
पर ऐसा कि हौसला न करो

इससे अच्छा है दोस्त हो न कोई
दोस्ती ग़र करो दग़ा न करो

दौड़ जाती है एक बिजली सी
जिस्म मेरा कभी छुआ न करो

मायने लोग दूसरा लेंगे
बेतक़ल्लुफ कभी हुआ न करो

बिन तेरे ज़िन्दगी मैं जी लूँगा
इस तरह की तो कल्पना न करो

ख़ार ‘आनन्द’ और हैं पत्थर
बन्द आँखों से तुम चला न करो

– डॉ आनन्द किशोर

1 Like · 1 Comment · 370 Views
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