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17 Oct 2021 · 1 min read

दहशत फैला रहा

दहशत फैला रहा (ग़ज़ल)
***********************

दहशती दहशत फैला रहा,
कुदरती कुदरत अब ना रहा।

रोक उसको वो है चल रहा,
फितरती फितरत में जा रहा।

वो सदा समझे खुद को खुदा,
आफती आफत है ढा रहा।

देखता उसको लाचार है,
हरकती हरकत में आ रहा।

रोज मनसीरत बदरंग है,
सिरफिरा काबू में ना रहा।
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

191 Views
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