दहलीज के पार 🌷🙏
दहलीज के पार🙏
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निज संतानो को पाला पोसा
बड़ा हो जग में आसन पाया
अफ़सर बन भारत माता की
सेवा करने का सुअवसर पाया
अफ़सरशाही के शानोसौकत
भूल गया अपना पराया माया
मोह अहम घमंड़ झंझावातों में
निज छोड़ दूजे अपना स्वयं तन
दुर्बलता कायाकल्प हो गया
भावों की झोंकों में दहलीज
पार छोड़ मुझे निज हालों पे
औरों की हाल पूछने चले गए
अनुनय विनय किया आंगन
आने को अकड़ आगे बढ गए
विकसित फूलों की इस डाली
निज भविष्य मुरझाने स्वयं
जिम्मेदारी साथ ले चले गए
कब तक कोईअपमान सहेगा
शूल बेदना खुद मुरझा जाएगा
पश्चतापे की अंध सागर में डूब
किनारा पाने की बैचैनी में
दहलीज सहारा लेना होगा
समय देता एक भुलावा सबको
स्वर्ग से सुंदर अपना जन्म घर
श्रृंगार सजा लिए चार कंधे
सहारे परिक्षेत्र भ्रमण यादों
मुरझा फूल दहलीज़ खिला
जग से विदाई लेना होगा
मातृभूमी कर्ज़ चुकाना होगा
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तारकेश्वर प्रसाद तरुण