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12 Oct 2019 · 1 min read

दस्तूर

बिगड़े हालात वजह न थे जिनके यहां आने की कभी
आज धूल के गुबार उड़ाता उनका काफिला आ रहा है

अफरातफरी मची है हर ओर हमदर्द बनने की पहल में
हमदर्दी का मरहम या वादों की पट्टी लगाने आ रहा है

फिक्रमंद होने का दावा है सभी का यहां के हालात से
अरसे बाद हर कोई यहां फिर दस्तूर निभाने आ रहा है

ज़ख्म बहुत गहरे हैं यहां जिनके निशां भी नहीं दिखते
हर कोई यहां राजनीति की जमीं तलाशने आ रहा है

मालूम है मजहबी आग के ठंडे पड़ चुके चूल्हों का उसे
वह ‘ सुधीर ‘ राख में दबी कोई चिंगारी ढूंढने आ रहा है……

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