*”दस्तक दे रहा है कोई”*
“दस्तक दे रहा है कोई”
ठहरी हुई रुकी थमती सी जिंदगी ,
चलता रहा फिर भी वो कारवां ,
राहों पे मुश्किलों का दौर जो आये
उलझनें सुलझती आसान हो गई ,
ढूंढती फिरती खोजती ही रही ,
ना जाने कब कौन कहाँ से आए ,
बता दे कोई ….
लगता है ……
दस्तक दे रहा है कोई….! !
उथल पुथल सी भगदड़ मची हुई ,
भूले बिसरे गुजरे जमाने को हम ,
कभी सुख दुख के साये में गुमसुम
वक्त के तेज रफ्तार में जकड़े हुए
टूटी हुई उम्मीद जगा उमड़ते हुए ,
बिछुड़े परिजनों से मिलने तरसते हुए ,
लगता है कोई आने को है ….
बंद दरवाजा खटखटाने को है ,
दस्तक दे रहा है कोई …..! !
तमाम कोशिशों के बाद कोई मिला ,
कुछ सुनने कहने को मन बेकरार है।
नए अरमान ख्वाबों को सजाने को,
वो हसीन पलों को चुरा हँसते खिलखिलाने ,
चेहरे में उम्मीद जगी आसमां छू जाने को ,
जीने की तमन्ना जाग उठी है।
आशा की किरणें फैल रही है।
लगता है कोई आने वाला है…
दस्तक दे रहा है कोई……! !
सुनी राहें आँखे तकती तरस रही मिलने को ,
आंख मूंद के बैठी दहलीज पे ,
कदमों की आहट सुनाई दे रही ,
साँसों की धड़कने तेज हो गई ,
बरसों तक खुद को सम्हाले रखा है।
फिर वही सुबह से सांझ ढलने को है।
घर आँगन में उम्मीद का दीप जलाये रक्खा हैं।
चिराग तले रौशनी आ रही है..
कोई आ रहा है …
दस्तक दे रहा है कोई…..! !
पतझड़ में पल्लव झड रहे धरा पे,
नई कोपलें शाखाएँ हरी पत्तियाँ आने को है।
सुरभित सुमन खिल उठे सुगन्ध बिखेरते ,
बसंत बयार पवन पुरवाई सतरंगी चुनर ओढ़ ली है।
नव संवत्सर आगमन आने को है।
वो सुबह सुहानी का इंतजार है…
दस्तक दे रहा है कोई…..! !
स्वरचित मौलिक रचना
शशिकला व्यास ✍️