दस्तक देती गुलाबी ठंडक आई*
दस्तक देती गुलाबी ठंडक आई।
आंँखें खुली तो देखा ,चाहूंँ ओर कोहरे ने धुंधली सी चादर तानी।
मंद -मंद मैं मन में मुस्काई ,दस्तक देती देखो गुलाबी ठंडक आई।
चिड़ियों की चहचहाहट के साथ गेंदे की ,वो कली भी आज खिल आई।
देखो दस्तक देती गुलाबी ठंडक आई।
कोहरे को छानती गुनगुनी धूप सुहानी सी लगे।
हर्षित मन से फिर
गर्म शाल ,ओढ़े खड़ी मैं आज, अदरक वाली चाय की चुस्की बड़ी प्यारी सी लगे।
देखो दस्तक देती गुलाबी ठंडक आई।
चूरा मटर ,आलू दम, अलाव के साथ ,ये गुलाबी ठंडक भरी शाम सुहानी सी लगे।
देखो दस्तक देती गुलाबी ठंडक आई।
मुख निकलते धुएं के साथ खेलते बच्चे, मफलर टोपी से सजे उनके चेहरे।
“शुचि”सब से कहती यह आज,
देखो दस्तक देती गुलाबी ठंडक आई।
डॉ माधवी मिश्रा “शुचि”
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश