दशहरा
किया था पाप मगर वेदों का भी ज्ञाता था
देख पौरुष जिसका तीनों लोक थर्राता था
ज्ञान,बुद्धि,बल,ध्यान जिसके थे ऐसे हथियार
महादेव का शिष्य वो लंकेश्वर कहलाता था
गुण नहीं देखते केवल हम तो दोष दिखाते है
कुंठा,अधर्म को नहीं सिर्फ ज्ञान को जलाते हैं
छल,कपट,अहं,तृष्णा को मन में अपने पाल कर
फूंक रावण का पुतला हर वर्ष दशहरा मनाते है।।