दशहरा
हर साल हम दशहरा मनाते हैं
रावण के पुतले को जलाते हैं
बुराई पर अच्छाई की जीत का
खुशी खुशी जश्न मनाते हैं
आज राम में राम जैसी मर्यादा नही
दशरथ जैसा बाप भरत जैसा भाई नही
परिवारों में आपसी प्रेम खो सा गया है
एक दूजे के लिए मन में सम्मान नही
रावण ने हरा सीता को पत्नी बनाने को
अशोक वाटिका में गए उन्हें मनाने को
बिना अनुमति हाथ तक ना लगाया था
कोशिश पूरी की इच्छा जताने की
आज हर एक के मन में वासना है
आबरू लूट लेने की तृष्ना है
राधा बची ना सीता बुरे विचारों से
बुरे विचार सुधर जाएं यही कामना है
जलाना है तो अंदर की कुटिलता जलाओ
जलाना है तो अंदर की वासना को जलाओ
मर्यादा पुरुषोत्तम राम तक तो तुम बन नही सकते
रावण की तरह एक बार सयंमि ही बन जाओ
वीर कुमार जैन ‘अकेला’
15 अगस्त 2021