#ग़ज़ल-35
ग़ुनाह करते हुए रुह तेरी रोती ही नहीं
नमी नहीं आँख में पर आँखें सोती ही नहीं/1
छिपा मगर दर्द झलकेगा सूरत-ए-आइना
दवा यहाँ झूठ की कोई भी होती ही नहीं/2
ज़ुदा-ज़ुदा राह लगती है तेरी क्या राज है
ग़िला कहीं हो मुझी से कहके धोती ही नहीं/3
मिला नज़र तू सही तो सजदा करता हूँ तुझे
अलग कभी यार अपनो से रुह खोती ही नहीं/4
रज़ा मज़ा प्रीत का प्रीतम देती है डूबके
मिला अगर दिल कहीं ग़म साँसें ढ़ोती ही नहीं/5
आर.एस.’प्रीतम’
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