दर-बदर भटकता जुस्तजू में तेरी
दर-बदर भटकता जुस्तजू में तेरी
की खुद की तन्हाईयों में हूँ गुमशुदा
करके ऐतबार तेरी मोहब्बत का
खुद के मुकद्दर से हो गया हूँ जुदा,
अब तो रूह भी छोड़ रही है दामन मेरा
होके रुखसार खुद की परछाईयों से
महफ़िलों में तन्हाईयाँ ही मिली है
भरा है गम का सागर आज फिर आंसुओ से ….