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10 Jun 2023 · 1 min read

कविता : दर्शनाभिलाषी

दर्शनाभिलाषी मैं प्रीतम।
दर्शन देना अपने अनुपम।।
द्वार खड़ा भगवान तुम्हारे।
रोम-रोम है तुम्हें पुकारे।।

सबके कष्ट मिटानेवाले।
मेरे मन में भरो उजाले।।
तम के बादल घोर निराशा।
एक तुम्हीं जीवन में आशा।।

ज्ञान कराओ मान बढ़ाओ।
आन शान की लग्न लगाओ।।
दर्शन देकर राह दिखाना।
सच्चाई की चाह लगाना।।

छोड़ बुराई झूठ बहाने।
सत्य वचन में लगूँ सुनाने।।
शाम-सवेरे ध्यान तुम्हारा।
भगवान तुम्हीं एक सहारा।।

नेक साधना अंतर्मन की।
समझ तनिक पूजा जीवन की।।
नित-नित तेरा ध्यान लगाऊँ।
मिलकर भव-सागर तर जाऊँ।।

#आर. एस.’प्रीतम’
#स्वरचित रचना

Language: Hindi
1 Like · 250 Views
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