!! ख़ुद को खूब निरेख !!
उठ प्रभात में, सुर्य प्रकाश में
ख़ुद को खूब निरेख
खड़ा सामने हो, दर्पण के
उलट,पलट कर देख
तुझ सा कोई दनुज नहीं
सम्पूर्ण धरा पर एक –
ख़ुद को…………………..
ईर्ष्या की ज्वाला में जलता
रग-रग में अतिरेक
काम,क्रोध,मद,मोह,लोभ वश
चेहरा लिए अनेक
बस्ती-बस्ती, घर-घर देखा
मिला न मानव एक –
ख़ुद को…………………….
मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे
घुम-घुम कर देख
आडम्बर से भरा पड़ा है
मानव का परिवेश
छल, कपटों के वशीभूत
मानवता दिखी न एक –
ख़ुद को……………………
घुम – घुम कर दुनिया देखी
अचरज एक से एक
देख सका न ख़ुद के भीतर
कौतुहल के टेक
आरत में तुझे नज़र न आती
कमियां खुद में एक –
ख़ुद को……………………
पूजा, मन्नत, ध्यान, व्रत, कर्म
साथ लिए विद्वेष
अन्तर्मन में झांक ले
फुर्सत मिले जो एक
अहित किसी कर न सके”चुन्नू”
बने जो मानव नेक –
ख़ुद को…………………….
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)