दर्द
बेचैनी आपके मन की, मेरी आँख का अश्क बन उतर आई है
पर खुशबू आपके एहसास की,वजह बन लबों पे मुस्कुराई है |
छाँह खोज रहा है दर्द, धूप में थक रहा है ज्यों
अश्क आँख का यारब, कोर पर सूख रहा है क्यों !
पड़ाव फिर एक ज़िंदगी का और एक सांझ उतर आई है
रीती नज़र ने सुरमई यादों को फिर गुहार लगाई है !
मसरूफ़ियत ज़िन्दगी पर हावी हो रही है किस क़दर
जुदा हो चुकी आपकी बाहों ने थाम रखा है मगर !
आपके एक शिकवे के लिए इंतज़ार में रही मेरी नज़र
और वार दिया सब आपने, मेरी एक शिकायत पर !
मुहब्बत निभाते रहे आप फ़र्ज़ के दामन में सहेज कर
जिसे निभाते हैं लोग अहसान के कागज़ में लपेट कर !
नश्तर चुभो रही है, आपकी दर्द भरी नज़र जुदा हो रही है
कुछ लम्हे रोक लेने को रूह आज फिर बेकाबू हो रही है !
मोहलत जो मिल जाती कुछ पल और गुज़र जाते
यारब टल जाता वह वक़्त और आप यहीं ठहर जाते !
बंद मुट्ठी से रेत की तरह फिसल ही गया सब
जाने किस बात पर नाराज़ हो गया मेरा रब !
लकीरें आज भी हथेली पर आपका अक्स बनाती है
किस्मत नहीं बदलती , अक्स को समझाती है |
शबनम फिर भी हर शब से मिलने तो आती है
बिखरा कर नूर फिज़ा में , सुबह फिर खो जाती है |
………. डॉ सीमा ( कॉपीराइट)