दर्द
“दर्द”
देखा है मैंने इस जमाने को,
मेरे दर्द में मुझे सताते हुए।
लाख कमिया निकाली और,
मुझे ही बुरा बताते हुए।।
लाखों थपेड़े खाये वक़्त के
फिर भी खुद को संभाला है।
खुशियो से लेन देन नही,
बस ग़मो को मैंने पाला है।।
अकेले में तो रो रोकर मैंने,
बुरी तरह से चीत्कार किया।
पर जमाने के आगे फिर भी,
हंस हंस कर सत्कार किया।।
व्यंग्य किया कसी फब्तियां,
बुरा मैंने किसी का माना नही।
जहर भी पिया अमृत समझ,
शायद था उस वक़्तवही सही।।
बनाकर घावों को नासूर,
फिर हमदर्दी जताते हुए।
देखा है मैंने जमाने को,
मेरे दर्द में मुझे सताते हुए।।