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13 Jan 2022 · 2 min read

दर्द पराया

डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

छिपा लेते हैं गम अपना नमी आंखों में रह्ती है
वो इंसा और होते है जिन्हें चाहत किसी की होती है

नहीं कहते किसी से कुछ न करते दुख बयां अपना
लिए फिरते हैं दर्द को अपने में सहानुभूति दिल में रह्ती है

सभी को चाह्ते हैं दिल से जिगर से हैं
दया भी सभी पर इनकी इक सार बह्ती है

कोई मेह्बूब होता है कोई प्यारा भी होता है
सभी से इनका रिश्ता तो बेहद हसीन होता है

नहीं इनको मिलावट का कोई भी रंग भाया
किसी से दिल मिला हो न ऐसा दिन कोई आया

खुदा के बंदे तो बस खुदा से नेक चाह्ते है
उसी की धुन में रह कर ये भला दुनिया का करते हैं

छिपा लेते हैं गम अपना नमी आंखों में रह्ती है
वो इंसा और होते है जिन्हें चाहत किसी की होती है

नहीं कहते किसी से कुछ न करते दुख बयां अपना
लिए फिरते हैं दर्द को अपने में सहानुभूति दिल में रह्ती है

मिलेगे गर ये तुमसे तो अपना तुमको बना लेंगे
मगर अपनी पीडा को ये तुमसे भी छुपा लेंगे

किसी के काम के काजे नही रहते कभी पीछे
भला हो जाये किसी का गर तो कभी हटते नहीं पीछे

छिपा लेते हैं गम अपना नमी आंखों में रह्ती है
वो इंसा और होते है जिन्हें चाहत किसी की होती है

नहीं कहते किसी से कुछ न करते दुख बयां अपना
लिए फिरते हैं दर्द को अपने में सहानुभूति दिल में रह्ती है

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