दर्द दे के भी मुँह मोड़कर।
गज़ल
काफ़िया- अर की बंदिश
रद़ीफ- गैर मुरद्दफ़
212…….212……212
दर्द दे के भी मुँह मोड़कर।
जा रहे हैं वो दिल तोड़कर।
बेवफाई है ये प्यार में,
जाते मझधार में छोड़कर।
जीने मरने का अब डर नहीं,
जब खबर ही न ली बेखबर।
हम अकेले भटकते रहे,
खोजते हैं डगर बेडगर।
और कोई नहीं भा रहा,
आईं कितनी ही रश्के कमर।
या खुदा अब तू ही ये बता,
कैसे होगी मेरी रहगुज़र।
मुझको जीना नहीं यार अब,
चाक कर देते मेरा जिगर।
अब जमीं पर न तेरे कदम,
ख्वाब उगने लगे चाँद पर।
तूने प्रेमी को धोका दिया,
खोज ले कोई भी हमसफ़र।
…….✍️ सत्य कुमार प्रेमी