दर्द तड़प जख्म और आँसू
दर्द तड़प जख्म और आँसू
मालिक ये कैसा शहर है बसाया
कोई संगदिल है कोई तंगदिल है
हैवान कोई बेरहम दिल है
कैसे कैसे हैं इंसा ये तेरे खुदाया
घुटती सिसकती तड़पती फिजायें
मुफलिसी से घायल कराहती सदायें
क्यूँ इतनी दूर बैठा जो सुनने न पाया
मालिक ये कैसा शहर है बसाया
भूखी नंगी प्यासी जिंदा बीमार लाशें
बूढ़ी पथराई सूनी डबडबाई आँखें
मरती हुई इनसानियत की काया
मालिक ये कैसा शहर है बसाया
कभी देख मंदिर मस्जिद गिरजाघर से निकलकर
येरूसलम काबा काशी मक्के मदीने मे आकर
चंद ठेकेदारों ने क्या बाजार है सजाया
मालिक ये कैसा शहर है बसाया
(स्वरचित मौलिक रचना)
M.Tiwari”Ayan”