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25 May 2023 · 1 min read

दर्द की आह

दर्द की चुभन
हो परिणत
बनती आह
दर्द से दग्ध
हृदय संतप्त
झेलता दावानल सा दाह
रिसता हो रक्त
खुला हो घाव
भर जाता लेकर वक्त
खेलती दवा जो अपना दाँव

दर्द बहता है आँखों से
बनकर तरल नमक की धार
सह जाता मारक तीर
नहीं झिलते शब्दोंं के वार
छलनी कर जाते हैं यूँ
के जैसे चुभे कंटीली तार
घातक ऐसे लगते हैं
जैसे दो धारी तलवार…

Language: Hindi
2 Likes · 119 Views
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