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27 Jun 2021 · 1 min read

दर्द का सैलाब

दर्द दिल का कुछ इस हद से बढ़ा,
आंखों से लहू का सैलाब बन बहा।

दिखाई देने लगी हर शय लहू से रंगी ,
कतरा कतरा आंसुओं का जब बहा ।

यह लहू था मेरे घायल अरमानों का,
जो जालिम तकदीर के हाथों से बहा ।

यह लहू मेरे सुनहरे ख्वाबों का भी था,
जो टुकड़े होकर आंसुओं के संग बहा।

संगदिल ज़माने ने बहुत सताया मुझे,
जिसकी वजह से खुद्दारी का लहू बहा ।

इस दर्द की कोई इंतेहा नहीं न जुल्म की,
टुकड़ों में मेरी सारी हस्ती का लहू बहा ।

एक लहू ही है दुनिया में जो सबसे सस्ता ,
बेजुबान और मासूम इंसानों का ही बहा।

काश ! सुनले खुदा हम मासूमों की गर,
इसी लहू में डूबकर मीट जाए यह जहां।

5 Likes · 4 Comments · 772 Views
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