दर्द का अंत
जब कोई अपना हमें
कस्दन पहुंचाता ठेस
आखिर उसकी दी हुई
दुःख, दर्द या उत्पीड़न
एक तरह से वो संताप,
दुख देकर भी देता शाद।
किसी के वसिले से हमें
कोई देता संताप, कलक
रंज, क्लेश में तड़पते हुए
मुझे देखकर उनका मानस
हो जाता होगा सहृदय चंगा
ए- गौं से वो हितैषी हमारा।
दर्द, पीड़न, दुख, मोहमाया
हर एक मानुष, मनुष्य को
सबों को झेलनी पड़ती यह
इंतकाल के पश्चात ही हमें
इन सबों से मिली अपवर्ग
सबों का इतिश्री देहावसान ।
जो हमारे गतिपथ में अक्सर
खोदते रहते है अज्ञेय, क्लिष्ट
उनके लिए यह सब हमारे
अनुरूप से है उनकी बचपना
जो खोदते रहते सतत दुश्वारी
दर्द की अंतिम उपचार है मृत्यु ।
लेखक:- अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार