दर्दे दिल
कफ़न सिरहाने रखा है,
पर मौत आती नहीं है।
लाख कोशिशें कर ली,
दिल से वो जाती नहीं है।
दर्दे दिल किसे दिखाऊँ,
मेरा कोई साथी नहीं है।
इसका इलाज करूँ कैसे,
दवा कहीं पाती नहीं है।
जिसने ये दर्द दिया मुझे,
वो शक्ल दिखाती नहीं है।
तड़पता रहता हूँ यादों में
तड़प मेरी मिटाती नहीं है।
ना जाने क्या हो गया उसे,
कलम अब चलाती नहीं है।
सुलक्षणा जिंदगी का पाठ,
मुझे अब सिखाती नहीं है।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत