” दर्दनाक सफर “
( यात्रा -संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
======================
सुखद सफर और दर्दनाक सफर जिंदगी के अनुभव हुआ करते हैं ! सुखद सफर जिंदगी के किताबों में अधिकाश मिलते रहते हैं परंतु कहीं -कहीं किसी किताबों के पन्नों दर्द भरी दास्ताँ भी छुपी रहती हैं ! मैं भला 03 जनवरी 2009 के सुबह को कैसे भूल सकता हूँ ?
मैं अपनी धर्मपत्नी आशा झा को अपने ससुराल शिबीपट्टी ,मधुबनी ,बिहार दिनांक 02 जनवरी 2009 सुबह 5 बजे अपनी मारुति 800 में बिठा कर चल पड़ा ! मुझे उम्मीद थी कि दुमका ,झारखंड शाम तक पहुँच जाऊंगा ! यह सफर 350 किलोमीटर का था ! हालाँकि 350 किलोमीटर का सफर अच्छी सड़क पर हो तो आज ही 5 बजे शाम तक दुमका पहुँच जाना निश्चित था !
चल तो चुके पर चारों ओर कुहासे की चादर फैली हुई थी ! और शिबीपट्टी गाँव से मधुबनी बाजार तक रास्ता जर्जर हो चुका था ! यह 8 किलोमीटर का सफर मानो 40 किलोमीटर का सफर हो गया ! वैसे सड़क अच्छी तरह दिख नहीं रही थी ! कड़ाके की ठंड थी ! कुहासे के पानी को हटाने के लिए मैंने वाइपर चला रखा था ! मधुबनी पहुँचते -पहुँचते कुहासा अपने घूँघट को समेटने लगा और मेरी मारुति कार पंडौल ,सकरी ,दरभंगा को छूती हुई मुसरीघरारी तक पहुँच गयी !
8 बज चुके थे ! सूर्य की किरणे हमें कुछ ताजगी दे रही थी ! कुहासा छँटने लगा था ! आशा से मैंने पूछा ,—
चलिए ,किसी होटल में कुछ नास्ता कर लें और एक -एक कप चाय हो जाय !”
आशा तो अपने मायके से कुछ खा कर नहीं चली थी ! मुझे ससुराल वाले के आग्रह पर नाम मात्र दही -चूड़ा खाना ही पड़ा ! मुझे तो सिर्फ चाय पीनी थी ! फिर भी आशा को साथ देने के लिए मैंने भी कुछ खाया और चाय पी !
मुसरीघरारी से समस्तीपुर तक की सड़क उतनी अच्छी नहीं थी तो खराब भी नहीं थी ! पर समस्तीपुर बाजार पहुँचकर मुझे जाम का सामना करना पड़ा ! किसी तरह छूटे तो समस्तीपुर से बेगूसराय 0 माइल तक खराब सड़क का सामना करना पड़ा ! मारुति की रफ्तार कम हो गयी ! आशा बार -बार हिदायत दे रही थी ,—
“ देखिए ,गाड़ी सम्हाल कर चलाइए ! देर हो जाय तो कोई बात नहीं !”
“ हाँ …हाँ ,मैं भी यही सोच रहा हूँ “ –मैंने कहा !
हल्का -हल्का मीठा -मीठा मेरे पेट में मचोड़ होने लगा ! अपने बेल्ट को मैंने ढीला किया ! टाइ को भी मैंने ढीली की ! हमलोग 2.35. दोपहर को बेगूसराय 0 माइल पहुँच गए ! ठीक एक- एक घंटे में मेरे ससुराल से फोन आ जाता था ! उस समय एक छोटा मोबाईल नोकिया का था ! मेरी आदत यही थी कि जब कोई मुझे फोन गाड़ी चलाते वक्त करता था तो मैं अपनी गाड़ी को रोककर उनसे बातें किया करता था ! 10 मिनट वहाँ रुका और बाद में मैंने लेफ्ट टर्न लिया और भागलपुर की ओर प्रस्थान किया !
अतिवृष्टि और भारी वाहन के दुष्प्रभाव से बेगूसराय से भागलपुर तक की सड़क का भी बुरा हाल था ! खगड़िया और महेशखुट पहुँचते -पहुँचते शाम के 5 बजे गए ! ठंड का समय था ! सूर्य की लालिमा समाप्त होने लगी ! नौगछिया पहुँचते काफी अंधेरा हो गया ! दरअसल मैं देवघर ,जमुई और राजेन्द्रपुल होकर मधुबनी गया था ! अब दूसरे रास्ते की स्थिति का अनुमान नहीं था ! आज 02 तारीख है और हमलोग यहाँ हैं !
रात अंधेरी हो चली थी ! यह सड़क हाई- वे सीधी पूर्णिया और असम के तरफ निकल जाती है ! मुझे दाहिना टर्न भागलपुर पुल के लिए करना था ! स्ट्रीट लाइट नहीं थी ! धुंध में कुछ नजर नहीं आ रहा था ! परिणाम स्वरूप मेरी मारुति भागलपुर पुल को छोड़ आगे पूर्णिया की ओर निकल पड़ी ! करीब 20 किलोमीटर के बाद मुझे एक पुल मिला जो भागलपुर के रास्ते में नहीं होना चाहिए ! मैंने अपनी मारुति रोकी और एक ट्रक को रोक कर पूछा ,——–
“ भागलपुर वाला पुल आखिर कहाँ छूट गया ?”
उस ड्राइवर ने कहा ,—–“ वो तो काभी पीछे ही रह गया ! आप तो पूर्णिया के तरफ जा रहे हैं !”
मारुति को वापस लिया और फिर मुझे भागलपुर का पुल मिला !
भागलपुर रेल्वे ओवरब्रिज से बैजानी तक रोड का निर्माण चल रहा था ! आधे में निर्माण रात में हो रहा था और आधे सड़क में लंबी जाम ! गोरहट्टा चौक ओवरब्रिज से मात्र एक किलो मीटर होगा ! यहाँ तक पहुँचने में 2 घंटे लग गए ! यहाँ तक 10 बजकर 15 मिनट हो गए ! सर्दी कड़ाके की पड़ रही थी ! किसी तरह गोरहट्टा पेट्रोल पम्प में पेट्रोल लिया ! आशा बार -बार कह रही थी ,—
“ रात हो रही है ,चलिए कहीं होटल में रुक जाय !”
पर मैंने कहा ,—-
“ अब दुमका सिर्फ 3 घंटे का सफर है ! चलते हैं ,वहीं पर आराम करेंगे !”
भागलपुर से दुमका के बीच में तकरीबन 10 डिवर्शन बने हुए थे ! सारा रास्ता ध्वस्त पड़ा हुआ था ! नींदें सता रही थी ! चारों तरफ धूल उड़ रहे थे ! रास्ता धूमिल पड़ने लगा ! स्ट्रीट लाइट कहीं नहीं थी ! अब तो तारीख भी बदल गया ! हम 3 तारीख में पहुँच गए ! समय बीतता गया ! रात भर मारुति को खींचता रहा ! हँसड़िहा झारखंड तो पहुँच गया ! नोनिहाट ,बारापलासी पार किया !
ठीक सुबह 3 बजे 10 किलोमीटर दुमका से दूर था ! लकड़ापहाड़ी में ट्रकों की कतार आ रही थी ! पता नहीं क्या हुआ छह चक्का वाली ट्रक ने हमें ठोक दिया ! गाड़ी चकना चूर हो गयी ! आशा को काफी जख्मी कर दिया ! रात के सन्नाटे ट्रक वाले निकल भागे ! दुमका से अविनाश मेरे मित्र का लड़का और भूषण ड्राइवर आया और अपनी गाड़ी से दुमका ले गया ! इस दर्दनाक सफर को जब कभी याद करता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं !
======================
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस .पी .कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
20.08.2022