दरिद्र नारायण भोज
दरिद्र नारायण भोज की हो चुकी थी तैयारी ।
कोई लिया था लोटा ,कोई लिया था थाली ।।
तलने लगी थी पूड़ियाँ, बनने लगी थी जलेबियाँ।
लगने लगा था लोगों का समाहार।
होने लगी थी चहुँओर थालियों की झंकार ।।
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आरंभ हो चुका था दरिद्र नारायण भोज।
सी.आई.डी.कर रही हो जैसे मडर की खोज ।।
हाथ में थाली लेके बढ़ने लगा ज्योंही लोगों का मेला।
लग रहा था होने को हो जैसे महाभारत विकराल ।।
पूड़ी लेते एक सज्जन ने ज्योंही चलाई एक पर लात।
बस फिर क्या था होने लगी चारों तरफ घूसों-लातों की बरसात ।।
पार्टी हो चुकी थी अब आधी।
सुनाई पड़ रहा था सिर्फ चारों और नानी -दादी ।।
पूड़ी बन गयी थी अब ढाल और सबने पहन रखी थी मलाई की खाल।
काजू -कतरी की तलवार करने को थी ही घायल ।
महिला ने तभी एक खो दी अपनी पायल।।
खोने से पायल महिला ने भी बना दिया था रुप विकराल ।
रिजल्ट में चारों ओर नजर आने लगा था पूड़ी -सब्ज़ी की ताल।।