दरश बिन
तुमसे बिछुड़े मोरे प्रभ जी भई छः मासी की रैन
दरश बिन दूखन लागे नैन,दरश बिन दूखन लगे नैन
जल बिन जैसे मीन अधीरा
बिन सावन जैसे रोये पपीहा
जैसे अम्बर धरती को तरसे
ऐसे ही मेरो जिया बेचैन
दरश बिन ……..
मैं का जानूँ प्रीति तिहारी
ना ही प्रभु मैं कोई पुजारी
तुम्हरी इच्छा मिली जो लगन है
देकर दर्शन दो अब चैन
दरश बिन ………
भोली भाली तेरी सुरतिया
गहरी आँखे मीठी बतियाँ
प्रेम की नगरी तेरी बहियां
इनमें मगन मन पावे चैन
दरश बिन ………
मन स्वामी तुम् सृष्टि स्वामी
सर्वव्यापी तुम् अन्तर्यामी
भूले नहीं हो रीत निभानी
राह निहारूँ पल हर छैन
दरश बिन दूखन लागे नैन
दरश बिन………….