दम तोड़ते अहसास।
इक फुर्सत के शाम में तुझ से यूं टकराना
भूली बिसरी बातों का अचानक ही याद आना।
सैकड़ों शिकायतें मन में पर होठों से मुस्काना,
बीते लम्हों को याद कर उन लम्हों में खो जाना।
मेरे अनसुने सवालों को आंखों से दोहराना,
तेरे अनकहे जवाबों का मेरे दिल में उतर जाना।
ज़ख्म पुराने छेड़कर उन पर मरहम लगाना,
दम तोड़ते एहसास का फिर से मचल जाना ।
उस अधूरी मुलाकात का मेरे सपनों को जगाना,
पर याद मुझे हमेशा-तेरा मुझसे दूर जाना।
लक्ष्मी वर्मा ‘प्रतीक्षा’
खरियार रोड, ओड़िशा।