दबी हुई हैं कई तहरीरें हमारी बस्तर के थानों मे
दबी हुई हैं कई तहरीरें हमारी बस्तर के थानों मे
लाशें मांग रही हैं इंसाफ गली सड़ी बयाबानों मे
आदिवासी हैं हम सदियों से बाशिंदे हैं जंगल के
फुर्सत मिले तो कभी खंगालना हमे दास्तानों मे
न हाकिम ने सुनी,न सुनी जमाने ने,और तो और
उंगली देकर बैठा रहा कानून भी अपने कानों मे
एक लौं को तरस रहें हैं सदियों से हमारे आंगन
फकत सन्नाटा रहता है आज भी इन मकानों मे
भुखमरी का आलम है अबूझमाड़ के कानन मे
ना साग है,ना सब्जी है,न ही राशन है दुकानों मे
अभी तक हमारे घर तुम्हारी उज्वला नही पहुंची
बस कुछ सूखे लक्कड़ धरे हैं घर घर मचानों मे
मारूफ आलम
कानन- जंगल
उज्वला- सरकार की योजना