*दफ्तर में साहब और बाबू (कुछ दोहे)*
दफ्तर में साहब और बाबू (कुछ दोहे)
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1
साहब को जो दे रहे, बाबू सही सलाह ।
सौ-सौ उन्हें प्रणाम है, वाह-वाह जी वाह।।
2
बाबू जी की कर रही, कलम निरंतर काम।
कहें कर्मयोगी उन्हें, सौ-सौ बार प्रणाम।।
3
कर्मठ बाबू ने किया, फाइल को तैयार।
साहब के बस दस्तखत, दुगनी मिले पगार।।
4
साहब को बाबू मिला, फाइल में निष्णात।
भाग्य-द्वार समझो खुले, ईश्वर की सौगात।।
5
दफ्तर में बाबू करें, कर्मठ दिनभर काम।
साहब ठहरे आलसी, करते हैं आराम।।
6
बाबू ने जो लिख दिया, समझो अमिट लकीर।
हर दफ्तर में लिख रहे, बाबू ही तकदीर।।
7
साहब से बाबू बड़े, बाबू के बड़भाग।
बाबू समझो खीर हैं, साहब सब्जी-साग।।
8
बाबू का अभिमत कटे, किसकी हुई मजाल।
साहब की नीली कलम, बाबू की है लाल।।
9
तय करना है मामला, तो फिर करें जुगाड़।
बाबू की उम्दा कलम, देती झंडे गाड़।।
10
फाइल में फीता बॅंधा, फीता होता लाल।
जिससे बाबू खुश नहीं, उसकी धीमी चाल।।
11
बाबू समझो राहु-शनि, देते रहिए दान।
नफा कराते हैं यही, करवाते नुकसान।।
12
दफ्तर में सबसे बली, बाबूजी का नोट।
नोटों से संबल हुआ, बिना नोट के चोट।।
13
दफ्तर में बाबू दिखे, करिए तुरत प्रणाम।
अगर लिफाफा दे दिया, बन जाएगा काम।।
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नोट = टिप्पणी, रुपया
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451