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30 May 2023 · 1 min read

दंभ हरा

दंभ हरा
दशानन तुम थे दस आनन वाले,
सोने की भव्य लंका में रहने वाले.
आशुतोष से अभय वरदान पानेवाले,
कुल बंधुबांधव से सदाघिरे रहने वाले.

कभी सोचा था ऐसा होगा तुम्हारा अंत,
युद्ध भूमि पर धराशायी होकर क्लांत.
काल के समक्ष बिल्कुल असहाय विश्रांत,
मौन का साम्राज्य था फैला मौत से आक्रांत.
धर्म के लिए तो तुम भी थे गहन अनुरक्त,
किन्तु अधर्म से तुम क्यों न हो पाये विरक्त.

गर्व होता तो उचित पर अभिमान था विषाक्त,
जहरीले विषधर के गरल सा न होने देता मुक्त.
मानव भी अक्सर यूँ पाकर समृद्धिका दान,
विजय दंभ से भरकर ईश का नहीं करते ध्यान.
क्षण में नहीं यह मानव बन जाता दशानन,
सदियों दस नहीं असंख्य मुखौटों वाला आनन.
कब बिना आनन के ही बना मन से रावण,
तन से आकंठ डूबा गर्व का पुतला रावण.
बिना दश शीश के जब होगा तेरा अवतरण,
तो धरा पर धर्म की स्थापना से ही होगा दहन.

Language: Hindi
2 Likes · 192 Views

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