दंग रह गया मैं उनके हाव भाव देख कर
दंग रह गया मैं उनके हाव भाव देखकर
अपने शरीर पर यूँ घाव घाव देखकर
अपने भी वैरी होते हैं मुझको न कोई ज्ञान था
हमने तो आपको दिया बस सम्मान था
फिर क्या हुआ जो रक्षा के हाथ सबने हटा लिए
मुझको गिरते देख कर अपनों ने भी मजे लिए
भेद भाव का क्यों बीज मुझ में भर दिया
अपना पराया का व्यवहार क्यों शुरू किया
कहते है निजसन्तान को आकाश पर बिठाऊंगा
फिर उसके लिए जितना हो सके तुझे दबाऊंगा
सब बदल जाते हैं यहाँ ये बदलाव का दौर है
अपने है बस माता पिता , अपने न कोई और है
मूंद ली नजर सभी ने कष्टों में मुझे देख कर
दंग रह गया मैं उनके हाव भाव देखकर
दंग रह गया मैं उनके हाव भाव देखकर
अपने शरीर पर यूँ घाव घाव देखकर
– अमित पाठक शाकद्वीपी
बोकारो , झारखण्ड
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