थोड़ा तो विश्वास करो
बेटी को बस कम ही कम
अब आंकना तुम छोड़ दो
हम से भी है शान देश की
अब तो आखिर मान भी लो
झुका हुआ था शीश तुम्हारा
हमने उसको उठा दिया
देश तो क्या परदेशों में भी
मान तुम्हारा बढ़ा दिया
सीमा पर भेजो चाहे
आकाश में हमको उड़ने दो
देश की मुख्य धारा में
इस बेटी को भी जुड़ने दो
कभी पैर की जूती समझा
कभी नरक का द्वार कहा
सदियो से बस चूल्हा चौका
ही अपना संसार रहा
रीत रिवाजों के परदे में
जाने कितने ज़ुल्म सहे
सीं कर अपने होठों को हम
सदियों तक चुपचाप रहे
लेकिन टूटी है चुप्पी तो
और न चुप रह पाएंगे
देश का गौरव है बेटी भी
ये तुमको दिखलाएंगे
मुश्किल से लड़कर पाई है
हमने अपनी आज़ादी
घर की चार दीवारी में हम
और नहीं रह पाएंगे
और न मारो हमें कोख में
अब तो थोड़ी शर्म करो
नहीं आन पर बोझ तुम्हारी
थोड़ा तो विश्वास करो
नहीं आन पर बोझ तुम्हारी
थोड़ा तो विश्वास करो
सुन्दर सिंह
मौलिक सृजन