थोथा चना
वसुधैव कुटुम्बकम
सारे जहाँ से अच्छा…
है प्रीत जहाँ की रीत सदा
सत्यमेव जयते
आदि इत्यादि जैसे
उच्च उदात्त उन्मत्त मानवीय भावों का
ठकुरसुहाती छद्म कपटी उद्घोष जहाँ हैं
रहें भी हों अगरचे ये
अपवाद से बढ़कर कोई चिन्ह मिले न
अलबत्ता पलते वही सदा से रहे हैं
अभी भी पले हैं
कटुता अमानवता बैर द्वेष गैरबराबरी अन्याय बरजोरी
हकमारी कर्तव्यशिथिलता स्वार्थसिद्धि के ओछे भाव असल में धरातल पर
यानी कि
छल छद्मों की भरी अटारी
काशी मथुरा वृन्दावन की धर्मनगरी की विधवा-व्यथा का
विकट नंगा सच जब हो सामने हमारे
ओल्ड एज होम जब घर कर रहे समाज में
कौन से कुटुंबपन
किससे अच्छा
किस प्रीत की कौन सी रीत
और कैसी जय
किस बात रह रह कर
घन घमंड करते हो भाई!