थोड़ी सी चटनी!
थोड़ी सी चटनी !
थोड़ा सा पापड़
जरा सी सलाद
जिंदगी भी कुछ यूँ ही है—
सतरंगी ,कई अंदाज और कई स्वाद!
कभी जोर-शोर का तड़का—
कभी गरीब की सन्नाटे की सब्जी!
कभी गुड़ और घी
जिंदगी भी कुछ यूँ ही है- – –
कभी मीठी, खट्टी और रसीली- —
कौन जाने ?
कब बदल जायें इसके ढेर मिजाज –कहीं हैं छप्पन भोग
तो कहीं हैं थाली खाली – —
जिंदगी कुछ यूँ ही तो है!
कभी मुस्कराये ,कमी उदास
किसी की जेब खाली -खाली
कल्पतरु की बगिया किसी के पास!
जिंदगी भी कुछ यूँ ही- – –