थोड़ा सा दिन
थोड़ा सा दिन
बचा कर रखा है
तुम्हारे लिए….
आओगे न तुम?
खुले किवाड़ को तकती
मेरी व्याकुल निगाहें
आतुर हैं
वो पदचाप सुनने के लिए
सुनकर जिसे
मायूस मन, मेरा
खिल जाएगा
तरस रही हूँ
आँखों में तुम्हारी
तस्वीर अपनी देखने को
प्रेम जब दरमियाँ होगा
और दोंनों की धड़कने
एक सुर में धड़केंगी
आ जाओ न…
गुजर न जाए वक्त कहीं …
सूना लम्हा प्रेम पिपासे नयनों से कुछ तो
मोहलत माँगेगा और
इंतजार तड़पकर
अधूरे ख्वाबों का फिर मोल माँगेगा
एकटक जोहती बाट तुम्हारी मैं सिसक पड़ूँगी
बचा खुचा दिन आँचल में कब तक समेटूँगी कि अब
क्या इन आँखों का
इंतजार तन्हा लौटेगा ?
निधि भार्गव