थोड़ा थोड़ा
एक दिन सब कुछ तज के जाना,
अभी से थोड़ा थोड़ा छोड़।
मन मर्कट भागे बेतहाशा,
इसको थोड़ा थोड़ा मोड़।
बचपन में खूब खेला कूदा,
जीवन क्या कुछ पता नहीं।
यौवन मय पी झूमा कितना,
मुख से सकता बता नहीं।
प्रौढ़ हुआ तो किया कमाही,
भरा तिजोरी रुपया जोड़।
एक दिन सब कुछ तज के जाना,
अभी से थोड़ा थोड़ा छोड़।
कार खरीदा महल बनाया,
घूमा बन कर शैलानी।
साँसों की पूंजी को खोया,
कदम कदम किया नादानी।
सौ का सहस सहस का लाखों,
लाखों से बढ़ किया करोड़।
एक दिन सब कुछ तज के जाना,
अभी से थोड़ा थोड़ा छोड़।
मानव तन मिला हरी कृपा से,
खोजो कोई मीत सजन।
भक्ति की युक्ति ले गुरु से,
निश दिन लगकर करो भजन।
सुमिरन करके राम रिझाओ,
चित को अनहद धुन में जोड़।
एक दिन सब कुछ तज जाना है,
अभी से थोड़ा थोड़ा छोड़।
जब तक सतगुर मिले न प्यारे,
तब तक खोजो द्वारे द्वारे।
पूरा गुरू मिलेगा जिस दिन,
नाम जपन सिखला देगा,
सुमिरन भजन किया यदि चित से,
अंदर हरि दिखला देगा।
सब्र सन्तोष क्षमा अपनाओ,
क्यों करना है किसी से होड़।
एक दिन सब कुछ तज के जाना,
अभी से थोड़ा थोड़ा छोड़।
सतीश सृजन, लखनऊ।