थोड़ा थोड़ा लिखना चाहता हूँ मैं
शीर्षक:- थोडा़-थोड़ा लिखना चाहता हुँ मैं.।
ख्वाबों को सजाता हुँ मैं
मंजिलों को ढूदने निकल जाता हुँ मैं
रास्तें जुदा होते है फिर भी,
थोड़ा-थोड़ा लिखना चाहता हुँ मैं.।
उम्र की लकीरों से फिसलता हुँ मैं
कहीं न कहीं राहों में तूमसे मिलता हुँ मैं
खामोशीयों में कब तक ठनी रहेगी बातें,
थोड़ा-थोड़ा लिखना चाहता हुँ मैं.।
अंगों में पीड़ा लिए फिरता हुँ मैं
ज्यों क त्यों बिकता हुँ मैं
सांसों में धरती की गंध लिए,
थोड़ा-थोड़ा लिखना चाहता हुँ मैं.।
स्वर्णिम सा चमकना चाहता हुँ मैं
संग तेरे दुश्कर: से लड़ना चाहता हुँ मैं
अपेक्षायों से भाव प्रकट कर,
थोड़ा-थोड़ा लिखना चाहता हुँ मैं.।
‘शेखर सागर’