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21 Nov 2021 · 1 min read

थी वो एक दुनिया

वो बेरोजगारी के ख्वाबों की दुनिया
लरजते सिसकते इरादों की दुनिया

वो सांसे थी अंतिम ये जीवन शुरू था
धुएं से भरी थी बुरादों की दुनिया

ना पुछो कि किससे जुदा हो गई हूँ
थी पलकों पे मेरी मुरादों की दुनिया ।

वो मेवों भरी मुट्ठियां मां के घर में
जुदा थी वो ममता के स्वादों की दुनिया

थे उत्तर हरेक प्रश्न के तब वहीं पर
वो कमसिन जवां सिन-दराजों की दुनिया

थे अलमस्त मौसम में खोये हुए हम
नरम दिल से अल्हड़ नवाबों की दुनिया ।

कभी कौंध जाती है दिल के मकां में
गुलों को छुपाए दराजों की दुनिया

‘लहर’ गीत तेरे थे बुनते कहानी
पुराने खतों के जवाबों की दुनिया

बड़ा दृढ़ था रिश्ता खुदी का खुदी से
वो बेखौफ –बेढ्ब इरादों की दुनिया ।

था तूफां भयानक लहर पर बची थी
थे सागर पे जलते चरागों की दुनिया ।

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

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